चलती हैं धीरे-धीरे लहरें,
जैसे कोई गीत पुराना,
कभी छेड़ें कोमल मन को,
कभी करें क्रोध का बहाना।
नीले विस्तार में हर दिन,
नयी कहानी बुन जाती हैं,
सागर की मौन गहराई में,
चुपके से कुछ कह जाती हैं।
कभी नृत्य करें चाँदनी में,
कभी सूरज संग तपती हैं,
फिर भी थकती नहीं कभी,
हर दिशा में बहती हैं।
सीपी, शंख, रेत, और मोती,
हर चीज़ को सहलाती हैं,
पर लहरों के इस आलिंगन में,
अनकही पीर छुपाती हैं।
लहरें आईं, लहरें गईं,
फिर लौट के आयेंगी,
जीवन का पाठ सिखा जाएँ,
फिर भी कुछ ना कह पाएँगी।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




