आवाजो में पिसी या बज रहे कान मेरे।
मोहब्बत फरेब न बन जाए बेईमान मेरे।।
नजर से दिख जाए तो रहमत खुदा की।
दरवाजा तो खटकेगा हवा बेईमान मेरे।।
यादो को सुलाऊँ तो सुलाऊँ कैसे सनम।
अब आ भी जाओ करो न परेशान मेरे।।
दिल सुबक सुबक के कह रहा 'उपदेश'।
और न तरसाओ तुम करो न हैरान मेरे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद