दृष्टिकोण से रंग बदलते हैं,
सूखे मन भी तरल बहलते हैं।
एक नजर में दोष नज़र आए,
दूजी में वो गुण भी पलते हैं।
आंधी में कुछ टूट भी जाते,
कुछ दीपक फिर भी जलते हैं।
जीवन है बस सोच का दर्पण,
जैसे भावों से स्वर निकलते हैं।
जो रोये, वो दुख में डूबा नहीं,
हँसे जो, वो सुख में छलते हैं।
हर पत्थर राह का रोड़ा हो —
ज़रूरी तो नहीं, फूल भी खिलते हैं।
कौन सही है, कौन ग़लत —
सब नज़रों से ही चलते हैं।
पर जो बदले दृष्टिकोण थोड़ा,
वो जीवन को नये ढंग से ढलते हैं।
— अमित श्रीवास्तव