घमंड पर दोहे
मन में अगर घमंड है,
इसे दीजिए फेंक।
रहने देता है नहीं,
यह मानुष को नेक।।1
मन के बढ़े घमंड से,
कभी न होता लाभ।
जितना बढता यह गया,
उतना घटता ग्राफ।।2
जिसमें जितना है रहा,
मन में कहीं घमंड।
उसे भोगना है पड़ा,
तिरस्कार का दंड।।3
नही शोभता है कहीं,
दिख्खे अगर घमंड।
बने हँसी का पात्र वह,
कहते सभी उदंड।।4
नित-नित के अभ्यास से,
जाता रहे घमंड।
ऐसे फैले किर्ति यश,
जैसे पुष्प सुगंध।।5
सब दिन नही घमंड को,
मिल पाता सम्मान।
घीरे धीरे ही सही,
मिलता है अपमान।।6
निश्चित कठिन प्रयत्न से,
पाता मनुज मुकाम।
पर किंचित घमंड बूंद,
ले डूबता सब काम।7
प्यासा मन से कीजिए,
न कभी लेश घमंड।
सचमुच इससे ही मरे,
कितने कौरव-कंस।।8
-प्यासा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




