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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

लगे

उगे उम्मीद की तरह... टूटन से ढलने लगे l
लोग ठिठक के ठहर क्या गए घर चलने लगे ll

हाथ - पाँव रहित देह में... न जाने क्या कमाल हुआ,
घर गुलजार हुए ठिकाने बदलने लगे l

नींव से बैर रहा ज़माने को एक अरसे से,
इत्तेफाकन घर.... अब घर से सम्भलने लगेl

दहलीज पर सबके खड़ा है एक अनजान शख्स,
जान- पहचान में लोग अपनों से जलने लगेl

दुनियां ने दिखलाई है करामातें सबकी,
अच्छा हुआ हम खुद को अच्छे लगने लगे l

स्वारथ का सौदा अकारथ हुआ मुक़्क़मल यारों,
खुद को खरीद - बेच के खुद को ठगने लगे l

सोच में रूहानी सच कुछ उतरा ऐसे,
आँखें नींद से बंद हुईं और खयालात जगने लगे l
-सिद्धार्थ गोरखपुरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

हर शेर जैसे आईना बनकर सामने खड़ा हो गया… बड़ी नफ़ासत से टूटन, उम्मीद और आत्मबोध को गूंथा है आपने। यह आत्मचिंतन का दस्तावेज़ है — और हर पंक्ति, जैसे खामोश दिल की आवाज़ बन गई हो। अद्भुत रचना!!

सिद्धार्थ गोरखपुरी said

सादर धन्यवाद आदरणीय

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