मोम के पंख ,
लक्ष्य सात्स्मुद्र पार ,
फ्ड़फ्ड़ाता पक्षी !
उड़नपरी
पांव जमीन पर ,
हास्यास्पद है !
दिग्भ्रमित ,
आर-पार बौछार ,
पालनहार !
अतुलनीय ,
बतंगड़ बातों का ,
वक्त व्यतीत !
मार्गदर्शक ,
मनवा चर्चा मिथ्या ,
अवारे हावी !
सौ सुनार की ,
एक लोहार की भी ,
पत्थ्र लकीर !
ऊंची दुकान ,
हीरे के आभूषण ,
पर्खे जौहरी !
वक्त बेवक्त ,
कुदरत का डंडा ,
खाए मुस्टंडा !
उदासीनता ,
सहनशीलता का ,
फूटे - गुब्बारा !
उड़ा ले गई ,
हकीकतों की हवा ,
निरंकुशता !
एकाधिपति ,
थिरक्ते आंसुओं को ,
चुपके पौंछें !
गिरते अश्क ,
पलकें सूजीं-हांफी ,
वक्त का खेल !
असमंजस्ता ,
चकनाचूर , बात
लाख टके की !
अतिशयोक्ति ,
ये ढीली-पक्की गांठे ,
धागा - अभागा !
अनसुलझी ,
गुत्थियां सुलझाए ,
पांचों उंग्लियां !
क्षीर से नीर ,
पी लेता हंस , सांच
को आंच नहीं !
मंजिल अब ,
दो-कदम है दूर ,
रे , बढ़े चलो !
लक्ष्येच्छाशक्ति ,
जीत पांव चूमती ,
कुंजी हाथ में !
पूर्व - पश्चिम ,
घर है सर्वोत्तम ,
भूले घर जा !
वन्याग्नि खौफ ,
नीड़ में नन्हे-चूज़े ,
फड़फड़ाते !
✒️ राजेश कुमार कौशल
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश]