सुख में भी दुख ढूँढना
दुखों से भाग नहीं सकते
सुखों को बाँध नहीं सकते
कर्मों पर सब छोड़ नहीं सकते
यदि सब कुछ कर्मों से ही होता
तो रामायण और महाभारत करवाने वाले स्वयम् भगवान न होते ..
कोई नहीं है ऐसा
जिसने दुखों की दहलीज़ पार न की हो
बेशक किसी का यह सफर हल्के में गुज़र गया हो और किसी को भीतर तक तोड़ गया हो
पर कोई ऐसा भी न होगा
जिसने सुखों के पल न देखे हों ..
सुख दुख की प्रतिस्पर्धा तो चलती ही रहेगी
इन्हें रोक पाएँ इतने हम सक्षम नहीं
फिर भी सब जानते हुए भी एक गलती करते हैं
दुखों के पलों में तो दर्द झेलते ही हैं
पर सुखों के पलों में भी बीते दुखों को ही याद करके स्वयम् को दर्द पहुँचाते रहते हैं
उसकी चाह में जो खो चुके हैं ,जो किस्मत से मिल रहा है उसे भी खो रहे होते हैं
सुखों में भी दुखों को ही ढूँढ रहे होते हैं ..
वन्दना सूद
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