"ग़ज़ल"
तुम्हें मुझ से मोहब्बत है बता क्यूॅं नहीं देते?
मुझे मेरी वफ़ाओं का सिला क्यूॅं नहीं देते??
ये जो मर्ज़-ए-मोहब्बत है मुझे तुम ने दिया है!
अब दर्द-ए-मोहब्बत की दवा क्यूॅं नहीं देते??
तिरे इश्क़ में यूॅं डूबा कि खो दिया ख़ुद को!
इस ला-पता को उस का पता क्यूॅं नहीं देते??
मिरे अन्धेरे जीवन में भी हो जाए उजाला!
इन गेसुओं को चेहरे से हटा क्यूॅं नहीं देते??
हाय! ख़ुद से मुझे तुम ने यूॅं दूर जो रक्खा है!
मैं लौट के आ जाऊॅं सदा क्यूॅं नहीं देते??
इस बार का ये सावन ख़ुद प्यास का मारा है!
उसे तुम अपनी ज़ुल्फ़ों की घटा क्यूॅं नहीं देते??
अब तक ये दुनिया नहीं पहचान सकी तुम को!
तुम क्या हो ज़माने को दिखा क्यूॅं नहीं देते??
तुम्हारे साथ अब जीना मुमकिन ही नहीं शायद!
'परवेज़' को मर जाने की दुआ क्यूॅं नहीं देते??
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*मर्ज़-ए-मोहब्बत = प्रेम-रोग (the ailment of love); *गेसुओं = जुल्फ़ों (tresses); *सदा = आवाज़ या पुकार (call).