पिता के रहने तक
प्रौढ़ हो चुके व्यक्तियों के भीतर भी
जीवित रहता है एक अबोध बालक
जो पिता के जाने पर उनके साथ चला जाता है
छोटे अबोध बच्चों के भीतर भी
छुपा होता है एक समझदार इंसान
जो पिता के आंख मूंदने पर जाग जाता है
पिता अकेले नहीं जाते
बचपन, चंचलता और खिलखिलाहट साथ ले जाते हैं
और पीछे छोड़ जाते हैं
सागर से भी गहरी रिक्तता
जिसे संसार का कोई भी दिलासा
कभी भर नहीं सकता...
- अभिनव