आज शब्दों की कलम को
एहसास की स्याही में डुबाकर
उसे कागजों पर उकेरा
तो जाना कि जैसे शब्द
कही टूट से गए हैं,,
जाने क्यों शब्दों को
महसूस करना कुछ थम सा गया है
अब शब्दों से नही
कुछ उलझनों से एहसास भर गए हैं
जिनको महसूस करना अब बोझ सा लगने लगा है
पहले शब्द गुदगुदाते थे,
अब सिर्फ खामोश कर जाते हैं,,
जाने क्यों अब शब्द, दर्द देने लगे हैं
कभी शब्दो से दोस्ती करके
उन्हे कागज पर,, एक ऐसे
अहसास को दिल में भरकर,, उकेरा जाता था
कि उन्हे लिखते, होंठ मुस्कुरा उठते थे,
लेकिन अब उन मुस्कुराहटो को
शब्द चुभने लगे हैं,,जाने वो शब्द
कही खो गए हैं,,जो हंसाया करते थे,
अब ना तो शब्दो में एहसास के रंग पिरोए जाते है
और ना उन्हे कागज पर उकेरा जाता है,,
क्योंकि जब खुदकी कलम
अपने एहसास से भरे, शब्दों को भूल जाए
तो शब्दो को कितना भी खूबसूरत बनाकर उकेरो
वो बेजान ही लगते हैं,,
क्योंकि एहसास का तो नाम ही शब्द है,,
शब्दो के बिना कुछ महसूस हो
ये मुमकिन ही कहा है
पर ये भी सच है कि शब्दो के टूटने पर
एहसास भी खतम हो जाते है
और एहसास में डूबी वो कलम भी, टूट जाती है,,
क्योंकि शब्द किसी के, अपने नही
ये जिसके होठों पर मुस्कुराहट ले आए, उसके लिए खुशी
और जिसके दिल को जख्मी कर गए,,
उसके लिए सिर्फ, नासूर बन जाते है,,
----गीतिका पंत