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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

मेहफ़िल उठ गई तो उठने दो..

मेहफ़िल उठ गई तो उठने दो,
शम्मा बुझ गई तो बुझने दो !!
कहकहे लगाने से लेकिन,
कोई रोका है क्या बोलो ज़रा !!

बाजी पलटेगी अपनी भी,
मैं दाँव लगाता हूँ खुद पर !!
कोई बुत को बिठाकर पीने से,
कोई रोका है क्या बताओ ज़रा !!

बदनाम ना कर मैख़ाने को,
यहाँ सच के ही सिक्के चलते हैं !!
यहाँ झूठों का है आना मना,
यहाँ सच के ही चोट छलकते हैं !!
बिन पिये भी चढ़ता नशा यहाँ,
यहाँ बातों से ही चढ़ता है नशा !!

कोई दर्द पिलाये तो नशा नहीं,
कोई आँखें दिखाये तो बुरा नहीं !!
अपना बनकर भी डसते यहाँ,
फिर भी कहते हो शराब बुरा !!
क्यूँ कहते हो है ये शराब बुरा !!

बस इतना ही बतला दो मुझे,
ना पीते तो हम क्या करते !!
पीते हैं तो बेशक़ जिन्दा हैं,
ना पीते तो अब तक मर जाते !!

बस एक गुजारिश है यारो,
तख्ती में लिखकर चिपका दो !!
कोई रूख ना करे मैख़ाने की
जीवन में नशा इतना भर दो,
ना देखें पलटके कोई ज़रा !!

टीप : रचनाकार वेदव्यास मिश्र की दृष्टि में यह सिर्फ रचना मात्र है !
रचनाकार किसी भी तरह से मद्यपान को सपोर्ट नहीं करता !!
निश्चित ही मदिरापान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है !!


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है
 मेहफ़िल उठ गई तो उठने दो      शम्मा बुझ गई तो बुझने दो !! कहकहे लगाने से लेकिन      कोई रोका है क्या बताओ ज़रा !! बाजी पलटेगी अपनी भी      मैं दाँव लगाता हूँ खुद पर !! कोई बुत को बिठाकर पीने से      कोई रोका है क्या बताओ ज़रा !! बदनाम ना कर मैख़ाने को      यहाँ सच के ही सिक्के चलते हैं !! यहाँ झूठों का है आना मना      यहाँ सच के ही चोट छलकते हैं !! बिन पिये भी चढ़ता नशा यहाँ      यहाँ बातों से ही चढ़ता है नशा !! कोई दर्द पिलाये तो नशा नहीं      कोई आँखें दिखाये तो बुरा नहीं !! अपना बनकर भी डसते यहाँ      फिर भी कहते हो शराब बुरा !! क्यूँ कहते हो है ये शराब बुरा !! बस इतना ही बतला दो मुझे      ना पीते तो हम क्या करते !! पीते हैं तो बेशक़ जिन्दा हैं      ना पीते तो अब तक मर जाते !! बस एक गुजारिश है यारो      तख्ती में लिखकर चिपका दो !! कोई रूख ना करे मैख़ाने की जीवन में नशा इतना भर दो      ना देखें पलटके यहाँ ज़रा !! टीप : रचनाकार की दृष्टि में यह सिर्फ रचना है ! रचनाकार किसी भी तरह से मद्यपान को सपोर्ट नहीं करता !! निश्चित ही मदिरापान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है !! 


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

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रीना कुमारी प्रजापत said

बहुत सुंदर रचना 👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

कोई जिंदा रहकर भी मर जाते हैं ज़माने में,हम तो जिंदा रहने के लिए जाते हैं मयखाने में। वाह क्या खूब लिखा है आपने। नमस्कार जी

वेदव्यास मिश्र said

रीना कुमारी प्रजापत जी,
सच कहूँ तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि ये रचना लोगों को शायद पसंद नहीं आई /आयेगी मगर मेरी ऐसी सोच है रचनाओं में रचनाकार को दोहराव से बचने के लिए और नवीनतापन के लिए कुछ नई अभिव्यक्ति को जरूर पेश करना चाहिए !!
मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है कि अगर बहानेबाजों और आदतन पियक्कड़ों को अपवाद मान लिया जाये तो लगभग टूटे,थके,हारे,परेशान अथवा घर से सताये हुए लोग ही थोड़ा सुकून प्राप्त करने के लिए ही मैखाने जाते हैं !!
मैंने वहाँ जाकर देखा है ,की बुजुर्ग जो बेटे -बहू के व्यवहार से परेशान हैं..लगभग उपेक्षित हैं !!
यहाँ भी वर्क की जरूरत है..अगर उन्हें थोड़ी सी भी थेरेपी मिले तो लोग बाग-बगीचे भी जा सकते हैं..वो मैखाने क्यों जायेंगे !!
देखने वाले को तो पत्थर में भी भगवान दिख जाते हैं तो ये लोग जिन्दा हैं..टूटे हुए लोग हैं !!
दरअसल कोई मुँह नहीं लगना चाहता किसी बेवड़े के !!
मुझे खुशी है कि मैंने बहुत से लोगों का दारू,राजश्री गुटका एवं सिगरेट पीने छुड़वाया है !!
यहाँ तक कि एक बाप 12 वीं में फैल होने पर दारू पीकर गाली दे रहा था और खुद को कोई रहा था !!
मेरे चक्कर में पड़ा तो उसका नशा ही उतर गया !!
उसका बेटा अगली बार तैयारी कर अच्छा पर्सेन्ट लाया और आज वो नौकरी भी कर रहा है जिसका अहसान वो मानता भी है !!
सुधरे हुए को तो हर कोई सुधारत है..कोई बिगड़े हुए को सुधारे तब कोई बात है !!
मैं सिर्फ अच्छा कहलाने के लिए रचनायें नहीं लिखता हूँ !!
सच सामने लाना भी रचनाकार की जिम्मेवारी है !!
आभार मैडम नमस्कार एवं बहुत-बहुत धन्यवाद मुझे अपनी बात रखने देने के लिए 🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" जी,
आपने तो जान डाल दी है अपनी नई शायरी को जोड़कर हमारी रचना में !!
निश्चित ही रचना और उभर कर सामने आ रही है !!
सधन्यवाद आभार भाई 🙏💝💝🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! ये रचना सीधे दिल को सीधे छू जाती है।
मेहफ़िल की वो बातें, नशे की वो उलझनें, और सच की वो कटु सच्चाई — सब कुछ बड़ी खूबसूरती से बयाँ किया है आपने। और हाँ हमें ज्ञात है आदरणीय रचनाकार किसी भी तरह मदिरापान का समर्थन नहीं करते हैं,
"पीते हैं तो बेशक़ जिन्दा हैं, ना पीते तो अब तक मर जाते" — ये लाइन तो बेहद असरदार है!
आपकी कलम में वो raw honesty और जज़्बात हैं जो हर किसी के दिल की आवाज़ बन जाते हैं।
वाह वाह! 👏🔥 बहुत खूब आदरणीय आचार्य जी, आपको सादर प्रणाम 👏👏

आलोक कुमार गुप्ता said

वाह व्यास जी मदमस्त करदेने वाली रचना 👌 👌

वेदव्यास मिश्र said

हृदयप्रिय अशोक पचौरी जी,
अब जाके मुझे सुकून मिला कि ये रचना लिखकर मैंने कोई गलती नहीं की !!
रचनाकार एक प्रयोगधर्मी भी होना चाहिए..ऐसा मेरा विश्वास है !!
दरअसल, रचनाकार लोगों के विचारों का एक प्रतिनिधि भी है !!
ध्यान से देखा जाये तो कोरोनाकाल में यही एक समुदाय ऐसा है जो मौत से नहीं डरता !!
मरने के बाद स्वर्ग मिले न मिले ..ये कौन जानता है मगर जीते जी स्वर्ग कहाँ पर होता है ये मैखाने में ही जाकर पता चलता है !
खेत के मेड़ पर, पान की दुकान पर , केरल खड़ी करके नीचे जमीन पर बैठकर जहाँ चार दोस्त मिलते हैं,उस कार्नर को..उस जज्बात को नजरअंदाज करना ज़रा तौहीन लगती है..उन मस्तानों के लिए !!
ध्यान से देखा जाये तो वे आर्थिक स्तंभ के एक मजबूत पायदान भी हैं ये !!
कभी -कभी लगता है..इन्हें सही सम्मान नहीं मिला है अभी तक ..इनके लिए भी कोई मेडल वगैरह होना ही चाहिए !!
मेरे तरफ से ये रचना सम्मान है उनके लिए 😍🍵🍵😍
आभार मुझे इस उपेक्षित रचना पर अपना दृष्टिकोण रखने के लिए और आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए जिन्दगी का अनमोल नशा है !!
शुभाशीष नमन आभार 🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

आलोक कुमार गुप्ता जी,
आभार दिल की गहराई से महोदय..सच कहूँ तो चिन्ता हो गई थी..कर्फ्यू भी लगा है और आज ही बार खुल गया है ..दोस्त आयेंगे या नहीं मगर अब दिल खुश है कि दोस्त दो दिन के लिए गायब हो सकते हैं मगर वो भूलते नहीं !!
कर्फ्यू अपनी जगह..मैखाने अपनी जगह और दोस्त अपनी जगह ..जब सारी दुनिया ठुकरा देती है तो पुराने दोस्त ही काम आते हैं..वे ही हालचाल पूछने आते हैं !!
बिना पिये दीवानगी को देखने का जो नशा है..उसका कहना ही क्या !!
मेरे एक स्टूडेंट्स को मैंने पन्द्रह सौ का हेल्प किया था ..जब मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसका बाप दारू पीकर मेरी माँ को मारता है और हम लोगों को भी ..यहाँ तक कि वो हम लोगों को पढ़ाना भी नहीं चाहता !! तीन दिन से घर में खाना ही नहीं बन रहा है क्योंकि अनाज का एक दाना तक नहीं है !!
रिस्क था ऐसी स्थिति में मुझे बदनाम होने की ..मगर मैंने हेल्प किया !!
मुझे सुकून मिला जब वो पीना छोड़ दिया और आज वो परिवार अपना नार्मल लाइफ बसर कर रहा है !!
एक दिन उस लड़की का बाप मुझे पैसा भी वापस कर रहा था मगर मैंने लेने से मना कर दिया !!
कहने का मतलब..छोटे से प्रयास से अगर अल्पांश में भी अंतर आये तो नेकदिल से प्रयास जरूर करना चाहिए 🙏💝💝🙏

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