मेहफ़िल उठ गई तो उठने दो,
शम्मा बुझ गई तो बुझने दो !!
कहकहे लगाने से लेकिन,
कोई रोका है क्या बोलो ज़रा !!
बाजी पलटेगी अपनी भी,
मैं दाँव लगाता हूँ खुद पर !!
कोई बुत को बिठाकर पीने से,
कोई रोका है क्या बताओ ज़रा !!
बदनाम ना कर मैख़ाने को,
यहाँ सच के ही सिक्के चलते हैं !!
यहाँ झूठों का है आना मना,
यहाँ सच के ही चोट छलकते हैं !!
बिन पिये भी चढ़ता नशा यहाँ,
यहाँ बातों से ही चढ़ता है नशा !!
कोई दर्द पिलाये तो नशा नहीं,
कोई आँखें दिखाये तो बुरा नहीं !!
अपना बनकर भी डसते यहाँ,
फिर भी कहते हो शराब बुरा !!
क्यूँ कहते हो है ये शराब बुरा !!
बस इतना ही बतला दो मुझे,
ना पीते तो हम क्या करते !!
पीते हैं तो बेशक़ जिन्दा हैं,
ना पीते तो अब तक मर जाते !!
बस एक गुजारिश है यारो,
तख्ती में लिखकर चिपका दो !!
कोई रूख ना करे मैख़ाने की
जीवन में नशा इतना भर दो,
ना देखें पलटके कोई ज़रा !!
टीप : रचनाकार वेदव्यास मिश्र की दृष्टि में यह सिर्फ रचना मात्र है !
रचनाकार किसी भी तरह से मद्यपान को सपोर्ट नहीं करता !!
निश्चित ही मदिरापान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है !!
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




