दुशासन मरते नहीं है
सत्ता से पैदा होते है
मिटते भर है
सत्ता शक्ति उन्मुक्त है
यही दुर्योधन जन्मती है
दुर्योधन मरते नहीं
मिटते भर है
सत्ता धृतराष्ट्र बनाती है
सत्ता ही अधर्म ही जननी है
सत्ता कर्णो को खरीदती है
सत्ता भीष्मों के सहारे
चलती है
सत्ता कहाँ विदुरों से डरती है
सत्ता द्रौपदियों का पीछा
करती है
अपनी जांधों पे बैठाने को
आतुर रहती है
द्रौपदियों कहाँ सुरक्षित
रहती है
दुसाशनो की हवसी ऑंखें
चीर हरणी सपनो में
डूबी रहती है
सत्ता छाया सी उनकी
उनके सिर पे रहती है
कृष्ण कहाँ पुहंच पातें है
हर पल चीर हरण सत्ता
के दरवाजे पर होते है
यहाँ हर क्षण धर्म युद्ध है
यहाँ हर क्षण धर्म हनन है