मेहंदी ने क्या खूब किसी को सजाया है,
जैसे चाॅंद उतर कर ज़मीं पर आया है।
चाॅंदनी पैरवी करती उसकी,
वाह! कैसा रूप निराला है ?
चाॅंद भी देख रहा ऊपर से इस चाॅंद को,
कर रहा उसका भी मन यहाॅं आने को।
सोच रहा कितनी मन भावन है इस मेहंदी की महक, जो पहुँच गई है मुझ तक।
मेहंदी भी मुस्कुरा रही देख इस चाॅंद को,
वो भी चमक रही देख अपनी खूबी को।
मंद- मंद मुस्कान लिए सोच रही मन ही मन,
वाह! क्या नज़ारा है ?
मेहंदी ने क्या खूब किसी को सजाया है,
जैसे चाॅंद उतर कर ज़मीं पर आया है।
चाॅंदनी भी इस चाॅंद पर फ़िदा हो गई,
वाह! कैसा ये आलम आया है ?
चाॅंदनी भी देख इस अप्सरा को,
आ गई खुद भी मेहंदी लगाने को।
सोच रही सजुॅंगी मैं भी इस मेहंदी से,
जिसने सजाया है इस अप्सरा को।
मेहंदी भी मुस्कुरा रही देख इस चाॅंद को,
वो भी बहुत खुश है देख अपनी खूबी को।
मंद - मंद मुस्कान लिए सोच रही मन ही मन
वाह! क्या नज़ारा है ?
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️