मन की चाहत पूरी होगी बोलो पर कैसे।
यह भी प्यारी वह भी न्यारी उलझा जैसे।।
उजाला तब तक जब तक सूरज चमके।
उसके बाद अँधेरे में डूबेगी दुनिया जैसे।।
दो नावों पर पाँव पसारे रहेगा कब तक।
सर्व नाश करने पर उतारू लगता जैसे।।
गले लगा कर छली गई 'उपदेश' प्यारी।
न्यारी भी गुम हुई तमाशा लगता जैसे।।
सीख मिली पर माने कौन मन है चंचल।
हर कोई रहा दुखी कहते न लगता जैसे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद