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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

झूठी है ये वसीयत जो तुम्हारे नाम आ गई है-ताज मोहम्मद

मेरी दिल्लगी देखो आज मेरे काम आ गई है।
मेरे नाम उनकी कई रंगी हंसी शाम आ गई है।।1।।

तुमको पाना इत्तेफाक ना था कोई भी मेरा।
ये मेरी ही दुआ है जो यूं मेरे काम आ गई है।।2।।

लूट कर लोगों को बनाते हो माल ओ मकाँ।
झूठी है ये वसीयत जो तुम्हारे नाम आ गई है।।3।।

मेहमाँ तो बहुत थे महिफलें जाँ ना था कोई।
इक आमद से तुम्हारी महफिले शाम छा गई है।।4।।

अच्छा किया तुमने उस टोकरी को खरीद के।
बेचने वाली बच्ची मेहनत के सही दाम पा गई है।।5।।

मेहनत बड़ी की है उसने मंजिल को पामें में।
ऐसे ही नहीं हस्ती उसकी यह मुकाम पा गई है।।6।।

नज़रे मजहब में कोई छोटा बड़ा ना होता है।
झूठे बेर खिलाकर साबुरी देखो राम पा गई है।।7।।

मिटती नहीं है हस्ती दीवानों की दुनियां से।
मीरा की मुहब्बत देखो अपना श्याम पा गई है।।8।।

भूल ना पाओगे तुम शहादत इन शहीदों की।
हस्ती भगत ,आजाद की जो मुकाम पा गई है।।9।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Lekhram Yadav said

सुप्रभात ताज भाई, आपको और आपकी गजल दोनों को सलाम।

ताज मोहम्मद replied

बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी।

फ़िज़ा said

तुमको पाना इत्तेफाक ना था कोई भी मेरा। ये मेरी ही दुआ है जो यूं मेरे काम आ गई है --- अच्छा किया तुमने उस टोकरी को खरीद के। बेचने वाली बच्ची मेहनत के सही दाम पा गई है Waah!! bahut khoob

ताज मोहम्मद replied

बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी।

डॉ कृतिका सिंह said

Bahut prasansneey rachna, aap hamesha salamat rahein.

ताज मोहम्मद replied

आप पर भी खुदा अपनी रहमत बनाए रखे। आमीन।

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