फूल बरसे इन नैनों से,
फूल बरसे इन नैनों से,
काहे रूप लिपटे लिपटे,
काहे रूप लिपटे लिपटे,
जान लेने को तरसे,
जान लेने को तरसे,
नशा ओढ़ के बैठी हैं रतियां,
नशा ओढ़ के बैठी हैं सखियां,
राहें तकते तकते,
राही थकते थकते,
होश के बेगाने वन से,
होश के बेगाने मन से,
सांसें चलते चलते,
सांसें चलते चलते,
काहे बचपन को हम तरसे,
काहे बचपन को हम तरसे,
फूल बरसे इन नैनों से,
फूल बरसे इन नैनों से,
दगा दिल से मिटते मिटते,
दगा दिल से मिलते मिलते,
पाई पाई को हम तरसे,
पाई पाई को हम तरसे,
यही मोह में सिमटे सिमटे,
यही मोह से सिमटे सिमटे,
काहे जीने से डरते,
काहे जीने को डरते,
फूल बरसे इन नैनों से,
खो रहे हैं इतने जन्मों से,
अपने होने को तरसे,
फूल बरसे इन नैनों से........।।
- ललित दाधीच।।