मैं दिल की सुनती हूॅं,
दिल की करती हूॅं।
दिल से कहती हूॅं,
दिल पे मरती हूॅं।
कुछ दिल मेरी सुनता है,
कुछ अपनी सुनाता है।
फिर पूछता है
बता तेरा इरादा क्या है।
मैं बताती वो सुनता पर फिर
आनाकानी कर देता,
हल्के से मुस्कुराता और फिर
कहता - तू भी ना पागल है।
दिल को मैं समझाती,
फिर वो भी मुझे समझाता।
और फिर अपनी बातों के आगे
मुझे हरा देता।
मैं भी क्या करूं ये दिल मानता ही नहीं,
जब भी इसे समझाती हूॅं समझता ही नहीं।
~रीना कुमारी प्रजापत