कहानी सुनाना, वो सपने दिखाना,
कंधे पर अपने वो दुनिया घुमाना,
दिए से देर तलाक साथ बैठकर पढ़ाना,
हर छोटी सी चीज़ को अच्छे से समझाना,
जो सपने दिखाए वो पूरे कराये,
दुनिया में दुखी न रहूं यह सोचकर चलाये,
बचपन से था मैं कमजोर शरीर में,
उनको था आभास पहले ही ऐसा,
नहीं कर सकूंगा में काम भरी भरकम,
इसीलिए मुझको कंप्यूटर इंजीनियर बनाये,
ना जाने वो पल खो गए थे कहाँ पर,
बातें भी बस ऐसे ही हो रही थीं अब
घर में जो बहुये जो आगयी थीं,
शाम में बस १० मिनट बमुश्किल
हाल चाल पूछना बैठना
फिर काम पर लग जाना
हॉस्पिटल से जब जब लौटा हूँ
हर बार माँ याद आयी थी
क्युकी पिता जी साथ होते थे,
अबकी बार जब लौटा तो
पापा के गले से लिपट कर
बस रोगया और इतना ही कह पाया
पापा आपने कैसे किया इतना सब
मैं भी एक पिता हूँ मैं क्यों नहीं कर पारहा
बोलते हैं प्यार से बेटे अभी तो मैं हूँ
तू क्यों परेशां होता है
एक पचपन साल का पिता
अपने तीस साल के बेटे के लिए खड़ा है
"मेने देखा है ३० साल के बेटों को
पचपन पचास साल के माता पिताओं को
घर से निकालते हुए
मेरे दोस्त ऐसा मत करो
कर लिया है तो उनको वापस लाओ
उनके बिना तुम कुछ नहीं हो
शरीर किसी का सगा नहीं है "
पापा पर मुझे बहुत अभिमान है
मेरी जान हैं वो, मेरी पहचान हैं वो