शिव शंकर, अनंत कला का सार,
जटा में बसी अमृत धार।
ध्यान लगा रहे त्रिपुरारी,
महादेव, तेरी महिमा भारी।
नीलकंठ, त्रिशूल के धारी,
अर्धचंद्र तिलक, विश्व भारी।
भूतेश, जगत के पालक,
भक्तों का करते हैं उद्धार।
गंगाधर, गंगा में बसे,
विश्व नाथ, तुम ही विकसे।
शिवाय, तुम्हारा ध्यान लिए,
संसार से मुक्त, भव से हुए।
मृत्युंजय, जगत के रचयिता,
त्रिलोकी नाथ, तुम ही सहारा।
महाकाल, समय के मालिक,
त्रिगुणातीत, आप ही राजा।
कैलास पर्वत, तुम्हारी आसन,
सर्वगुण सागर, तुम्हारा भवन।
भूतपति, भूतेश्वर,
तुम्हारी महिमा, अनुपम अपार।
महाकाल, तुम्हारा भयानक रूप,
भयहारी, जगत के सुपूज्य।
नीलकंठ, तुम्हारा आभूषण,
भक्तों का करते हैं अभूषण।
भस्मांतक, तुम्हारी ताणी,
आप ही हो सर्वगतिवाणी।
शिव शंकर, तुम हो सर्वशक्तिमान,
भक्तों के ह्रदय में बसे रहते हैं।
- अशोक कुमार पचौरी
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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