सूरज के समक्ष मुंह करके ताक रहा ,
मैं जीने की दुहाई मांग रहा
जिन्हें मरने का मरने जीने का संग साथ रहा ,
विपदा पड़ी तुझ पर में जीवन से भाग रहा,
दुविता है विपदा है पल-पल मुझे ठगा है,
किसी से क्या कहूं वह भी तो मेरा कुछ लगा है,
निशा अंधेरे मिट गए
बिन गलती हम पिट गए ,
जाग रुपी जीवन में जीत गए ,
कोयल का मधुर गाना
उल्लू का रात्रि सम्मान
मेरा वह हुआ अपमान
मेरी आंखों में भर आया जलपान ,
जीवन जीने दो मुझे
मैं जीने की भीख मांग रहा
तेरा बेटा तेरा लाल दुहाई मांग रहा,
अभी फसल बोई थी ,
महीना ही तो बीता था ,
सारे सग बैठ बैठ प्रेम रस पिता था
जिसके होने पर जग होना जरूरी नहीं था
ऐसा मेरा बड़ा भाई था
लेकिन और भी है कोई और भी है
जिसके जीने की दुहाई मांग रहा,
जीने दो उसे में जीने की दुहाई मांग रहा,
औठ कंबल भरी गर्मी सूरज धरती से नाप रहा,
आयु अभी यूवा है फिर भी शिशु सा भाग रहा,
मैं जाग उठा में रोया था पल-पल के लिए कुछ खोया था
मै जीने की दुहाई मांग रहा
----अशोक सुथार

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




