Swiggy पर क्लिक किया —
Pizza, Pasta, Burger लाइन में खड़े थे,
“Order now” की घंटी बजी —
डिजिटल थाली में स्वाद पड़े थे।
भूख तो थी, पर आदतें बदली थीं,
किचन से नहीं, अब मोबाइल से खुशबू चलती थी।
Zomato भी पीछे न था, कहता —
“Sir! 30 minutes में घर के अंदर Italy पका देंगे!”
पर एक दिन घर पहुँचा —
थक के चूर, मन खाली, पेट भूखा।
Swiggy app crash हो गया —
और उस रात… माँ ने दरवाज़ा खोला।
“खाना खा ले बेटा, रोटी गरम है” —
उसने कहा, और मेरी थकान गल गई।
दाल में जीरा था, सब्ज़ी में ममता,
और रोटी… रोटी में माँ का स्पर्श था।
न कोई coupon था, न cashback,
पर वो स्वाद — cashback से कहीं ज़्यादा back था।
न प्लास्टिक की पैकिंग, न rating का बोझ,
बस एक थाली… और माँ का मौन भोज।
Swiggy कभी माँ नहीं बन सकता,
क्योंकि App में Algorithm होता है,
और माँ में…
“आशीर्वाद”।
माँ की रोटियाँ न trending होती हैं,
न viral — पर पेट से ज़्यादा,
मन को तृप्त करती हैं।