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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

माँ के हाथ की रोटी बनाम Swiggy

Swiggy पर क्लिक किया —
Pizza, Pasta, Burger लाइन में खड़े थे,
“Order now” की घंटी बजी —
डिजिटल थाली में स्वाद पड़े थे।

भूख तो थी, पर आदतें बदली थीं,
किचन से नहीं, अब मोबाइल से खुशबू चलती थी।
Zomato भी पीछे न था, कहता —
“Sir! 30 minutes में घर के अंदर Italy पका देंगे!”

पर एक दिन घर पहुँचा —
थक के चूर, मन खाली, पेट भूखा।
Swiggy app crash हो गया —
और उस रात… माँ ने दरवाज़ा खोला।

“खाना खा ले बेटा, रोटी गरम है” —
उसने कहा, और मेरी थकान गल गई।
दाल में जीरा था, सब्ज़ी में ममता,
और रोटी… रोटी में माँ का स्पर्श था।

न कोई coupon था, न cashback,
पर वो स्वाद — cashback से कहीं ज़्यादा back था।
न प्लास्टिक की पैकिंग, न rating का बोझ,
बस एक थाली… और माँ का मौन भोज।

Swiggy कभी माँ नहीं बन सकता,
क्योंकि App में Algorithm होता है,
और माँ में…
“आशीर्वाद”।

माँ की रोटियाँ न trending होती हैं,
न viral — पर पेट से ज़्यादा,
मन को तृप्त करती हैं।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

वन्दना सूद said

वाह वाह काबलीय तारीफ़ 👌👌👏👏उम्दा रचना प्रस्तुति 🙌🏻🙌🏻

Shiv Charan Dass said

बहुत सुन्दर. .. माँ में आशीर्वाद

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! ये कविता दिल से जुड़ी हुई, बेहद प्यारी और दिल को छू लेने वाली है। "डिजिटल ज़माना चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए, माँ के हाथों का खाना और उनका प्यार कभी किसी ऐप से मुकाबला नहीं कर सकता।" ❤️🙏 आपने इस कविता में टेक्नोलॉजी और माँ के प्यार का जो खूबसूरत कंट्रास्ट दिखाया है, वह सच में दिल को गहराई से छू जाता है।

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