अब कुछ लिखते नहीं हो तुम,
लिखने की वजह रूठ गई क्या ?
अब पहले से खुश दिखते भी नहीं हो तुम,
खुश होने की वजह मिट गई क्या ?
आरज़ू अब और कुछ रही नहीं तुम्हारी,
तमन्नाओं की वो लौ बुझ गई क्या ?
अब जाते भी नहीं हो तुम किसी महफ़िल में,
महफ़िलों की वो शान कहीं खो गई क्या ?
दास्तां अब सुनाते नहीं हो तुम उसकी,
दास्तां सुनाने की वो वजह अब क़रीब नहीं
रही क्या ?
मिलते भी नहीं हो अब तुम हमसे,
हमसे मिलने की वो वजह अब नहीं रही क्या ?
अब वो शायराना अंदाज़ रहा नहीं तुम्हारा,
उस मिज़ाज की वजह कहीं गुम गई क्या ?
अब मुस्कुराते भी नहीं हो तुम,
मुस्कुराने की वो वजह लूट गई क्या ?
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️