मानवता बची नहीं,
बन गया हैवान।
इस धरा पर करता मनमानी,
बन गया शैतान।
परिवार उसका विलख रहा,
लील गया उसकी जान।
हिटलरशाह बन बैठा,
न जाने लगा, कितनों की जान।
लाचार, बेवश सा,
घर में फंदे पर झूल गया।
किया प्रताड़ित इतना,
जीना ही भूल गया।
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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लील गया उसकी जान।
हिटलरशाह बन बैठा,
न जाने लगा, कितनों की जान।
लाचार, बेवश सा,
घर में फंदे पर झूल गया।
किया प्रताड़ित इतना,
जीना ही भूल गया।