लहरों में हम इतने,हो मशगूल गये
साहिल पर तो,आना ही भूल गए
हसरतें जो थीं, हसरतों में ही बंधी रहीं
बस, इन्हें,दिल से लगाना ही भूल गए
छटपटाती रही, कुछ बातें, मोहब्बत की,हलक पर
और ये सब, लबों पर, आना ही भूल गए
जमाना इतना भी ज़ालिम नहीं, कि
जीने वाले से, जिंदगी छिने
वो और हैं, जो, साथ निभाना ही भूल गए।
सर्वाधिकार अधीन है