भौंरे की तरह बचपन गुजारा दिल नही हारा।
हारी है जिन्दगी जिस पर दिखी नही दोबारा।।
उसकी खुशबू चारो तरफ मेरे आस-पास में।
भागता फिर रहा जैसे कुछ खो गया हमारा।।
सीखता बहुत लफ्जों को बरतने का तरीका।
कुछ काम ना आया याद आता वक्त गुजारा।।
इतना कठिन भी नही पता खोज पाना उसका।
मिलने जाना सही नही दिल कह रहा हमारा।।
उसकी खबर ने विचलित कर दिया 'उपदेश'।
कटते नही है रात दिन उसके इंतजार ने मारा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद