ना काम करतें हैं ना काम ढूंढते हैं।
लोगों की क्या बात कहें
सिर्फ़ बैठे बैठे जवाब ढूंढते हैं।
कौन क्या करेगा ये वो हीं बताएंगे
और दसटकिया के नोट पर
स्वयं कुछ भी कर जायेंगें।
बनते हैं बैठे बैठे देश भक्त
ये मक्खी भी ना मार पायेंगे।
सिर्फ़ मां बाप के छाती पर
बैठे बैठे मूंग दल रहें हैं।
पकिटमारी छिनैती सेंध मारी
में अंदर जा रहें हैं।
फिरभी ऐंठन कम नहीं
बल दिखा रहें हैं ।
पुश्तैनी ज़मीन बेच
हुक्का दारू मुर्गा खा रहें हैं।
काम धाम कुछ नहीं बस
अपनी नाकामियों को
सरकार की खामियां बता रहें हैं।
सरकार ने नौकरी नहीं दी
इस लिए बकरी चारा रहें हैं ।
और बाप दादा के जमा कमाई
खोर खोर खा रहें हैं।
अपनी नाकामी की गीत गा रहें हैं।
सरे आम लोग ...
अपनी नाकामी की गीत गा रहें हैं।
और तो और...
फुटानी में कुछ कमी नहीं
बेरोजगारी में थार चला रहें हैं ।
जिम में बॉडी बिल्डिंग
लड़की घुमा रहें हैं ।
पता नहीं फिरभी क्यूं...
देश में है बेरोजगारी
बेरोजगारी ये चिल्ला रहें हैं...
लगतें हैं खुद उल्लू
या उल्लू बना रहें हैं..
ऐशो आराम की जिंदगी में
बेरोजगारी बेरोजगारी
चिल्ला रहें हैं..
बेरोजगारी बेरोजगारी चिल्ला रहें हैं...
लगतें हैं खुद उल्लू
या उल्लू बना रहें हैं...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




