तुझे देखके मेरे बदन में,
सरसराहट सी हो रही है !!
फूलझड़ी सी छूट रही है,
झुरझुराहट सी हो रही है !!
इसे खेल मैं समझूँ उमर का,
या असर है मौसमी कोई !!
मेरे होंठ सूख रहे हैं,
थरथराहट सी हो रही है !!
अब तो इलाज करो मेरी,
या ऐसे ही मर जाऊँगा !!
है अजीब सी बेचैनी,
कंपकपाहट सी हो रही है !!
वेदव्यास मिश्र की शृंगार रस से ओतप्रोत
एक शानदार हाई😍वोल्टेज रचना..
सर्वाधिकार अधीन है