जिंदगी किसी तन्हा से पत्ते पर बैठी है,
जिसे किसी डाल से जहां ने पकड़ा हुआ है,
जिस दिन तपन से संघर्ष ने,
जिस दर्द दुःख की हवा ने,
उसे झंझोड़ कर रख दिया ना,
उस दिन वो गिर भी सकता है,
और और पत्तों की आहट से कमजोर भी होगा,
एक दिन पेड़ की चेतना और तरंगों ने,
ईश्वर की तरह काल से जाल में फंसाकर,
उसको फिर से शून्य कर दिया,
उसे समय के बीजों ने,
कोमल शाखाओं के नए नियमों और मानकों ने,
नीचे गिरा दिया,
अब उसका ना नाम ना कोई स्तर है,
ना कोई प्रभाव ना कोई प्रमाण,
वो कुचल गया सूख गया,
तन्हा रहा,
बिखरता रहा,
आंधी में घुल गया,
आंखों में किसी के आया तो,
किंकरी बना,
आंसुओ से निकल गया,
मिट्टी में मिला,
सूख गया,
अब वो कहीं नहीं,
सब कुछ साफ़ है,
हर जगह से निकल गया,
कहीं मिला ही नहीं,
ताज्जुब है,
पहले वो तन्हा तो था,
अब ढूंढे तो किसी तन्हाई में भी नहीं,
हम मिटते हैं तो निशान हैं,
लेकिन जिसने भी बनाया तो वो मिटा दे,
तो अनजान हैं अनजान हैं अनजान हैं।।
- ललित दाधीच।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




