सब मौन हैं यहां पर
इन आशुओं का हिसाब कौन लेगा !
देश के तथाकथित ठेकेदारों से सवाल कौन करेगा।
बस एक बोतल दारू और एक प्लेट मुर्गा
पर सब ठीक ठाक है ।
यहां कलम वाला को कोई नहीं पूछता
उसी की भैंस है जिसके हाथों में लठ्ठ है।
ऊपर से हरा भरा अंदर सफ़ा चट है।
पढ़ा लिखा बेवकूफ यहां अनपढ़ फटा फट है।
अपना तो अपना जनता के हिस्से को भी कर जाता चट्ट है।
यहां अट पट सब खटा खट है।
देश का हालत लग रहा सफ़ा चट है।
जो बाहुबली हैं नेता ठेकेदार हैं ।
वह देश के साथ कर रहें व्यापार हैं।
आम आदमी क्षणिक सुख की खातिर कर रहें जय जयकार हैं।
लोगों समझाना लगता अब बेकार है।
अजीब तिरस्कार है ढोंग पाखंड संस्कार है..
लूट कर देश को खा गए डकार तक भी ना लिया।
सत्ता के लोभ में देश की हीं बलि चढ़ा दिया।
करोड़ों के प्रोजेक्ट को चंद मिनटों में मिट्टी में मिला दिया।
चिंता मत करिए जनाब सिस्टम ने इंक्वायरी बैठा दिया।
कुछ रिटायर्ड जज कुछ सेवामुक्त बाबू होंगें
दो चार साल में तो इंक्वायरी कमीशन की रिपोर्ट बता हीं देंगे।
तब तक न जाने कितने मुजरिमों को बचा दिए होंगें।
कुछ ज़िंदा होंगें कुछ ऊपर निकल लिए होंगें।
इतना हीं नहीं....
तब तक कितने नए हादसे हो चुके होंगें।
जनता की यादस्त कमज़ोर है
नए हादसों के चक्कर में पुराने को भूला दिए होंगें।
अंततः ये हादसे और इंक्वायरी की कोई सीमा नहीं।
सच तो ये है कि नेताओं को देश की चिंता नहीं।
फिकर देश की में कोई जनता नहीं ।
सब अपनी हीं फ़िराक में लगे हुए हैं।
मालामाल वीकली के चक्कर में फंसे हुए हैं।
यहां हादसों पर मुआवजे की मरहम है।
बीन सुर ताल के सरगम है।
मर रहे तो आम आदमी हीं हैं
कभी उनका कोई मरता है।
मरें हैं तो आम आदमी
उनका क्या जाता है।
गलती नेताओं की नहीं
बल्कि उनके चुनने वालों में है।
बेईमान छल कपट कपट खुले आम घूम रहें यहां..
और सच्चाई ईमानदारी सौ तालों में बंद है।
देश की हालातों के लिए जिम्मेवार..
यही जयचंद हैं यही जयचंद हैं...