व्रजगोपालस्य निजांशलाभे,
संसारचक्रं त्यजतो भवाम्भोः।
प्रेमरसपूर्णं स्फुरद्विभासं,
गोपीकानाथं भजतां सुखं॥
साक्षात् ब्रजाधिपं नवं नवं,
गोपालरूपं सदा विभाति।
भक्तानुग्रहार्थं कलाय नित्यं,
कृष्णं वन्दे जननीशसूतम्॥
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
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