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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कोलाहल के शहर में गाँव की पुकार

शहर की साँसें शोर की सीटी-सायरन सी लगीं,
हर गली में भागती, थकी-थकी सी छबी।

धुआँ-दिशा-दिशा में बिखरा, कंक्रीट-कांच का जंगल,
चमक-चकमक में खो गया, आत्मा का मंगल।

इमारतें बोलीं, “हमने आसमान छुआ है”,
पर रिश्तों की जड़ें यहाँ, धूप में झुलसा हुआ है।

हर चेहरा व्यस्त, हँसी बस नकली मुस्कान है,
मशीनी चाल में लिपटी आज इंसानियत परेशान है।

न दादी की गोद है, न चौपाल की बतकही,
न पीपल की छाँव, न वो दोपहर अलसाई सही।

स्नेह-संगति की जो गंध थी, कहीं हवा में खो गई,
गाय-गगरी, गीत-गुलाब की भाषा थक कर सो गई।

ग्राम्यगौरव की वो महक, अब भी दिल को ललचाए,
जहाँ माटी-ममता मिलकर मन को माँ सा सहलाए।

गाँव की गलियाँ कहें – “आ लौट चलें उस छाँव में”,
जहाँ समरसता-सुख पलते हैं, शांति-संवाद की ठाँव में।

नई सड़कें, ऊँची उड़ानें, पर अंदर है खालीपन,
कोलाहल से भरा नगर, बस सिसकता अपनापन।

अमित श्रीवास्तव




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

फ़िज़ा said

शहर और गांव के जीवन और शोर शराबे के बीच का बखूबी अंतर स्पस्ट किया है लाजवाब

सुभाष कुमार यादव said

गाय-गगरी, गीत-गुलाब की भाषा थक कर सो गई।.... बेहतरीन👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत खूब लिखा आदरणीय अमित सर जी तारीफ में कहने के लिए अलफ़ाज़ नहीं हैं सादर प्रणाम

उपदेश कुमार शाक्यावार said

वाह अति उत्तम रचना

श्रेयसी said

न दादी की गोद है न ..... वाह क्या कहने लाजवाब रचना 👌👌🙏🙏

Shiv Charan Dass said

बहुत सुंदर अमित जी......शहर और गाँव अलग........ग्राम्य गौरव की वो महक..... गई हैअब गाँव मे भी दरक

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