तेरी याद आई तो सांसों में इक नशा आया,
ख़ामोशीओं के बीच कोई धड़कता सिला आया।
हर दुआ में तेरा नाम लिया था मैंने,
जवाब जब मिला, तो रूह तक हिला आया।
चाँदनी भी शर्माई, तेरे हुस्न के आगे,
रात भर तन्हा दिल में कोई ग़ज़ल लिखा आया।
सजल गई हैं आंखें अश्क़ों की आब से,
तेरी बेरुख़ी का मौसम आज फिर चला आया।
रात के सन्नाटे में भी तेरा नाम गूंजा,
जैसे रब की ज़बां से कोई फसाना चला आया।
लबों पे नाम तेरा था, दिल में सवाल कुछ और,
इक नशा तेरा, इक फ़ितूर बेहिसाब और।
तेरी ज़ुल्फ़ों की गिरहें भी मुझसे कुछ कह गईं,
ये मोहब्बत है कि है कोई पुराना हिसाब और?
मैं जिसे जान समझता रहा उम्र भर,
वो निकला आईना — मगर अजनबी ख़्वाब और।
तेरा साया भी आजकल रूठा-रूठा सा है,
जैसे रिश्तों में कोई बाकी हो ख़िताब और।
कभी तू समझा नहीं, कभी मैं कह न सका,
इस मोहब्बत में बस चुप्पियों का हिसाब और।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'