किसी की भी रचना को पढ़ा नहीं जा सकता,
बल्कि उसकी रचना से खुद को उस पल रचना पड़ता है।।
हर रचना शब्दों का पन्ना नहीं,
बल्कि एक घर है जिसमें रहना पड़ता है।
उसी रचना में सुबह-शाम और दिन-रात होगी।।
- ललित दाधीच।।
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उसी रचना में सुबह-शाम और दिन-रात होगी।।
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