वक्त की बातों में आके, सबक सिखा गई ज़िंदगी..
मगर वो जैसी थी, वैसी ही मुझको भा गई ज़िंदगी..।
कहने को तो हर बात का, ज़वाब हाजिर था मगर..
कुछ हसीं सपने दिखाकर, कैसे बहला गई ज़िंदगी..।
दुनिया सिमटी हुई लगी मुझको, दौराने हमसफ़री..
जो थम गए तो, इक मोड़ पर उम्र बिता गई ज़िंदगी..।
फूलों की सेज पर बैठे थे, भुलाए दुश्वारियां ज़माने की..
एहसासे दर्द हुआ, जाने कब नश्तर चुभा गई ज़िंदगी..।
यूं तो ठोकरों ने सिखाए थे हर कदम, सलीके हमको..
फिर भी जो देखे न थे, वो भी रंग दिखा गई ज़िंदगी..।
पवन कुमार "क्षितिज"