आज़ादी का पर्व ये ऐसे ही न आया है,
कई शीश कटे, कई रक्त बहे, कइयों ने लाल गंवाया है,
तब जाकर के कहीं इस आसमान में अपना तिरंगा लहराया है...!
--- कमलकांत घिरी..✍️
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--- कमलकांत घिरी..✍️