जब देखा दर्पण तो अक्स भी दर्पण में नहीं
थोड़ा झांका ख़ुद में तो ख़ुद ही ख़ुद में नहीं
ताज़्जुब हुआ ए कमाल तो समझ आया नहीं
पूछा मैने जो सांसों को उसको तो पता ही नहीं
ढूंढना छोड़ा मन को टटोला वो तो वहां था नहीं
सपनो की दुनियां थी, सच तो कुछ था ही नहीं
भागा स्पर्श उसने स्पंदन किया महसूस हुआ नहीं
ए क्या केवल भ्रम माया करें सत्य को समझ नहीं
जीवन सचमें जादूगरी है और कोई फसाना नहीं
फ़िर भी मोहमाया से लगाव संसार ही संसार नहीं
दलदल जैसा चाहो तो खिंचे अंदर बचाता ही नहीं
प्रयास करो तो निर्थक मृत्यु को शरीर से मोह नहीं

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




