जो खुद अपने जमीर से ही बेवफा होते हैं
जरा सी बात पे हरकिसी से खफा होते हैं
दुनियां के आदमी कभी एक से नहीं होते
हर किसी की सूरत या सीरत जुदा होते हैं
माँ बाप को भूल जाने वाले नालायक बेटे
बुढ़ापे में खुद भी खून के आंसू यहां रोते हैं
हमारे घर की छत तो हमेशा चहचहाती है
हमारे आँगन में ये परिंदे अपने पँख धोते हैं
दास बचपन गया तो फिर ना आएगा कभी
माँ की याद में रो रोके बस तकिये भिगोते हैं