कापीराइट गजल
होती नहीं हैं पूरी यह ख्वाहिशें किसी की
खिलते नहीं कमल ख्वाहिश पे किसी की
लहरों की तरह उठती हैं ख्वाहिशें अनेक
साहिल पे डूबती हैं ख्वाहिश किसी की
मचले हैं जब अरमान इस दिल में कभी
निकला है यह दम ख्वाहिश पे किसी की
मिलती है कहां मंजिल हर ख्वाहिश को यहां
मर जाती है जब यह ख्वाहिश किसी की
कहां मिलता है सुकून हर किसी को यहां
अगर होती है अधूरी ख्वाहिश किसी की
अधूरे हैं सब ख्वाब ये ख्वाहिश के बिना
रहती है खोई खोई ये ख्वाहिश किसी की
हर ख्वाहिश अगर सब की हो जाए पूरी
खिल उठेगी यादव यह जिन्दगी उसी की
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है