लहरों से लड़कर
साहिल पाई जाती है।
सारी बंदिशों को तोड़कर
मंजिल पाई जाती है।
वो क्या ख़ाक पाएगा राहें जुनून
ना हो जिसके दिल में ख्वाहिश
पाने का अपना हक़ और हकूक।
जीवनरूपी समुंदर का असीमित
साम्राज्य है
बांध सका न इसे अर्जुन जैसा
भी धनुर्धारी
ना हीं कोई अतिविचारी चमत्कारी
यह तो अनवरत चलते रहती है।
है ये जीवन जो सम्पूर्ण व्योम पर
छाई रहती है।
उड़ा दे होश फकत जिसमें क्षोभ है
वरना ये जीवन मरण तो एक क्षोभ है।
याद रख्खो केवल लड़ने से हीं
अधिकार पाया जा सकता है।
सिर्फ़ दिखाई की दंभ से अहंकार
उत्पन्न होता है।
और शंकर से विकार तिरस्कार और
हिकार हीं हिकार बस जीवन हो जाए
विकार कोई ना विचार केवल हिकार हीं हिकार...