अधर्म को मूक बनकर मात्र निहारे जाते।
उन्हीं की पीढ़ी आगे चलकर सजा पाते।।
मेरा लिखने का अंदाज हकीकत से भरा।
पढ़ने वाले तवज्जो देते हुए मशविरे लाते।।
कुछ दिल के ज़ज्बात शिकायत की तरह।
अदालत जान पाती वही जो लिखे जाते।।
चालाकी कब तक छुपाओगे महकमे में।
पकड़वाने वाले ही हर तरफ सराहे जाते।।
पत्थरों का शहर भी हकीकत से वाकिफ।
इंसानियत के शब्द 'उपदेश' समझे जाते।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद