कविता : संस्कृति और परंपरा....
एक दिन रेडियो
अन किया
रेडियो बजा मैंने गाना
सुन लिया
गाना था, खेत गए बाबा
बाजार गई मां
घर में अकेली हूं
आ जा बालमा
इस गाने ने कुछ नहीं
मिलाया सब कुछ हिलाया
मां को बाजार में और
बाप को खेत में पहुंचाया
अब बालमा और बालमी
दोनों हैं मस्त
उन दोनों का ताल मेल भी
है जबरदस्त
उनकी हर ये पल
बड़ी निराली है
न उन्हें देखने वाला
न देखने वाली है
अगर गाना लिखने वाले
ऐसे ही लिखेंगे
आज कल के बच्चे खाक
अच्छा सीखेंगे ?
गाना गाने वाले भी ऐसा
गाना मस्ती से गा रहे
आज कल ये लोग बच्चों
को कहां पहुंचा रहे ?
गाना लिखने वालों गाना गाने
वालों ये बात मान जाओ
हमारी अपनी संस्कृति
परंपरा भी तो बचाओ
हमारी अपनी संस्कृति
परंपरा भी तो बचाओ.......
netra prasad gautam