मैं एक अधूरी चिट्ठी हूँ—
जिसे कभी डाक में नहीं डाला गया।
सिलवटों से भरी,
पर लफ़्ज़ों से खाली।
घर की दीवारें
अब मुझे नहीं पहचानतीं—
वो तस्वीरें जो कभी टांगी थीं,
अब मुस्कराने के बजाय
मेरी ओर पीठ करके लटकती हैं।
बच्चे…
अब मेरी आँखों के काँच में नहीं,
अपनी-अपनी उड़ानों में रहते हैं।
कभी जिनके पैरों में
मैंने ख्वाब की पगड़ियाँ बाँधी थीं,
अब उन्हीं पाँवों से
मैं केवल धूल बनकर झरता हूँ।
मेरी पत्नी—
अब भी वही रसोई में है शायद,
पर उसकी चूड़ियों की खनक
अब मेरे कानों तक नहीं आती।
लगता है
वक़्त ने उसके हाथों से रंग चुरा लिए हैं,
और मुझे
उसकी चुप्पी से बात करनी नहीं आती।
मैं हर रोज़
अपने कमरे की खिड़की पर
एक पंछी की तरह बैठता हूँ,
पर उड़ नहीं सकता।
क्योंकि मेरी परछाई
किसी पुराने संदूक में बंद हो चुकी है—
जहाँ यादें साँस तो लेती हैं,
पर बोल नहीं पातीं।
कभी-कभी
मैं अपनी ही तर्जनी से
दीवार पर कोई नाम लिखता हूँ—
फिर उसे मिटा देता हूँ,
जैसे जीवन में कभी
मुझे मेरा नाम लेकर पुकारा ही न गया हो।
अब शब्द
मेरे पास आकर चुप बैठते हैं,
मैं कुछ कहता नहीं,
वो कुछ सुनते नहीं—
और इसी मौन में
मैं हर दिन
थोड़ा और अदृश्य हो जाता हूँ।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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