कविता - खड़की से....
मेरे घर के खिड़की से
पड़ोसी को झांक कर देखा
इतने में ही मुझ को
कमबख्त पड़ोसी ने टोका
ओ बेशर्म अपने खिड़की से
मेरे घर को झांकता है ?
मेरे गैर हाजिरी में शायद
तू मेरी बीबी को देखता है
वैसे तूझ से मेरी
कोई बैर नहीं
फिर मेरे घर में देखा तो
तेरी कोई खैर नहीं
मैं बोला, ओहे कलमुंहे
खिड़की से यूंही नजर लगाया है
कौन सा मैंने तेरी अपनी
बीबी से थोड़ी ईश्क लड़ाया है ?
वैसे मेरे घर पर मेरी
सुंदर सुशील बीबी खड़ी है
तेरी बीबी को झांक कर
देखने की मुझ को क्या पड़ी है ?
तेरी बीबी को झांक कर
देखने की मुझ को क्या पड़ी है.......?