क्या रोकेगा कोई कदमों को हमारी
हम किसी के मोहताज़ नहीं।
भेद ना सके हम जिसे बना ऐसा
हुआ यहां कोई राज़ नहीं।
हम डरते नहीं गीदड़ भभकियों से
क्योंकि तुम जैसा कोई कायर
और हम जैसा कोई शूर वीर नहीं ।
अहसानों को हमारे तुमने सदा हीं
हमारी कमजोरी समझी है।
मत भूलो कि तुम्हारी सांसों की डोरी अब
तो हमारे हीं पास पड़ी है।
कितनी भी ताकत लगा लो
अपनी सात पुश्तों की ज़ोर आज़माईश
लगा लो तुम हमारा बाल भी बांका नहीं
कर सकते हो....
तुम आतंक के आका तुम मानवता को
कहां समझते हो...
जा दिया जान दान में तुम्हें तुम्हारी 65 71 99 में।
अब तुम्हारी छठी की दूध याद दिल देंगें
तुम्हारे हीं सेव के बागानों में।
दूसरों के हक़ हुक़ूक़ को लूटने वालों
अब तुम्हें पहुंचा दे जहन्नुम में ।
फिर चैन से सोए रहना अपनी बनाई हुई
आतंकवाद की तरन्नुम में।
अपनी 72 हुर्रों के संग जहन्नुम में ..
अपनी आतंकवाद की तरन्नुम में
अपनी 72 हुर्रों के संग जहन्नुम में...