कविता : जीवन का अंतिम पड़ाव....
तुमने मुझ को देखा
मैंने तुम को देखा
दोनों का करार हो गया
फिर हमारा प्यार हो गया
उसके बाद मैं तुम्हारा
आधा तुम मेरी आधी हो गई
दो चार साल बाद फिर
तुम्हारी मेरी शादी हो गई
फिर पैदा होने
लगे हमारे बच्चे
वो छोटे छोटे में
लगे बहुत अच्छे
बाद में फिर हम
हो गए काफी बूढ़े
अपने पैरों में भी
न हो सके फिर हम खड़े
क्या करें हम बहुत
दुखी हो रहे
मौत भी न आई दोनों
अब रो रहे
मन हमारा भीतर से
एकदम डरा डरा है
ये जीवन का अंतिम पड़ाव
काफी दिक्कत भरा है
ये जीवन का अंतिम पड़ाव
काफी दिक्कत भरा है.......