कविता : चड्डी का फसाना....
लड़की, हे मैंने सबेरे छत पर
चड्डी सुखाई है
वो चड्डी मेरी तुम ने
क्यों उठाई है ?
क्या है तुम्हारा
इरादा बता दो
मेरी चड्डी जल्दी
मुझ को लौटा दो
लड़का, मैं एक सीधा सादा
अच्छा खासा बंधा हूं
दूसरों की चड्डी क्यों उठाऊं
मैं थोड़ी न गंदा हूं
उल्टी सीधी हम को
आरोप मत लगाओ
हद से बाहर हो गई थोड़ी
लाइन में आ जाओ
लड़की, अरे कैसे गधे हो
बातें यूंही मत बनाओ
चड्डी मेरी है कि तुमरी
है जरा खोल कर बताओ
लड़का, अगर मैं चड्डी खोल कर
दिखाऊंगा फिर क्या रह पाएगी ?
अरे कैसी बुरवक हो इज्जत
मेरी... ..मिट्टी में मिल जाएगी
अरे कैसी बुरवक हो इज्जत
मेरी...... मिट्टी में मिल जाएगी.......
netra prasad gautam