कविता : बदतर....
जानवर जंगल में रह
रहे वहीं पेट भर रहे
हम हैं कि जंगल को काट रहे
पर्यावरण सब खराब कर रहे
हर तरफ बबाल ही
बबाल कर रहे
अपना ही अस्तित्व
खतरे में डाल रहे
आदमी लड़ लड़ कर एक दूसरे
पर मिटने और मरने लगे हैं
हम तो जानवर से भी बदतर
हो गए ये क्या करने लगे हैं ?
हम तो जानवर से भी बदतर
हो गए ये क्या करने लगे हैं .......?