"माँ का आंचल"
बड़ा सुकून देता है मुझे, मां का आंचल।
जब भी मैं दुनिया की,
उलझनों से परेशान होती हूँ,
संभाल लेता है मुझे, माँ का आंचल।
स्नेह, वात्सल्य, ममत्व से पोषित,
वह मेरे जीवन में, नई ऊर्जा का संचार करता है।
देखने में तो है वह, छोटा-सा वसन,
पर उसमें पूरा ब्रह्मांड समाया है।
अद्भुत महिमा है इस आंचल की,
जिसके सामने ब्रह्मा,
विष्णु और शंकर ने भी अपना,
शीश झुकाया है।
माता अनुसूया ने अपनी, ममता वात्सल्य से,
त्रिदेवो को भी नचाया है।
पूरी सृष्टि का अस्तित्व ही,
इस आंचल में समाया है
इस आंचल में बिताए हैं मैंने,
सुकून भरे पल।
रचनाकार-पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज, पूर्वी चम्पारण (बिहार)