काश ! के मैं भी इस आसमां में उड़ पाता,
काश ! के मैं भी साथ अपनों के रूक पाता।
काश ! ये सारा जहां मेरा होता,
काश ! के मैं भी इस जन्नत का सुख पाता।
काश ! के मैं भी तेरा हो पाता,
काश ! के आंचल में तेरे सो पाता।
काश ! ये गिले शिकवे ना होते,
काश ! के मैं भी तन्हाई में तेरी रो पाता।
काश ! के ये कोरा काग़ज़ भर जाता,
काश ! के ये नीला आसमां चल पाता।
काश ! ये ख़्वाब अधूरे ना रहते,
काश ! के मैं ख़यालों में तेरे रह पाता।
काश ! के ये रिश्ते जिनके रंग फीके पड़ गए हैं
गहरे हो जाते,
काश ! के वो यादों में मेरी खो जाते।
काश ! के सभी अपने होते इस जहां में,
काश ! के राहों में तेरी खुशियों के बीज हम बो पाता।
"रीना कुमारी प्रजापत"