अपने गमों को दूर करने के लिए भटकते रहते हैं,
कभी इस गली कभी उस गली डोलते रहते हैं।
कहीं कोई उपाय मिल जाए,
बस इसी तमन्ना में सफ़र करते रहते हैं।
अपनों को साथ किया नहीं हमने अपने दर्द को मिटाने में,
कहां उन्हें भी अपने संग तकलीफ़ में डालूं
जब खुश है वो अपनी ही दुनियां में।
बस तन्हा ही ढूंढ रहे हैं अपनी लाइलाज बीमारी का
इलाज हम,
बाकी साथ देता है कौन जब लटके हो बीच मझधार में।
वैसे फ़ुर्सत ही कहां होती है किसी को
किसी का दर्द जानने की कि पूछ ले क्या है हाल आपके,
अब तक तो ऐसे ना थे फिर अब क्यों है बदले-बदले
मिज़ाज आपके।
फ़ैसला जो ऐसा कर लिया हमने कि
जिसे सुन अपनों ने भी साथ छोड़ दिया हमारा,
फिर क्यों किसी से नाराज़ रहे हम ये सोचकर कि
पूछता नहीं हमसे कोई कि क्या है अरमान आपके।
तन्हा सफ़र करना ही हमारी ज़िंदगी की हक़ीक़त है,
फिर क्यों हमे इस दुनियां से शिक़ायत है।
जब अपने ही मुसीबत में साथ नहीं निभाते हैं तो
ग़ैरों से क्यों उम्मीद लगाए कि वो पूछे हमसे कि
सब ख़ैरियत है।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️